.....سَكني المَنسي.....
ويلٌ لي... 
ولمأسات عمرٍ... 
لم أَفهمه يوماً... 
هل هي أَيام... 
تخشى... 
أن تفرح معي... 
أم أنها سويعات...
غادرت مذبحي..
وتستعد... 
لحرق جثتي...
والوقوف عند قبري... 
ورمي زهرة الوداع... 
وتنظر نحوي... 
غربة أخری...
تستعر مضجعي... 
عجباً منك لم لا...
عني ترحلي... 
وهل سترفعي أَكفُكِ... 
ولأَجلي تدعي ربكِ... 
وتحزن... 
مقلتيكِ لغيابي... 
أم أنك ستُقيمي...
حفلاً ساخراً لموتي... 
وترقصي تارةً هنا... 
وتارةً أخرى هناك...
وعند كلماتي وأحرفي...
تقفي وتلقي التحية... 
أَم لأَجلِ سَحابةٍ...
كانت تبكي معي...
تفتّت جزيئاتها... 
لتغطي لي جسدي... 
وتحادثُ الريح...
لتقطفُ الورود... 
وتنثرها حولي...
قبل نثر تربتي... 
وتدير ظهرها... 
والإبتعادُ بعيداً... 
ونسيان سَكني...
إِلى الأبدِ... 
---بقلمي---
...سُهاد حَقِّي الأعرجي...
26/1/2019 
السبت

ربما تحتوي الصورة على: ‏‏‏شخص أو أكثر‏ و‏أشخاص يقفون‏‏‏

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