....إِشتياقْ..... بقلم...سُهاد حَقِّي الأعرجي...



....إِشتياقْ.....
بقلم...سُهاد حَقِّي الأعرجي...
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أَين أَنتِ... 
يا رفيقةَ الدرب... 
وكيف... 
أصبحتِ وامسيتِ... 
وكم من مرةٍ... 
أَخرسَتكِ الأَوجاع... 
وصَفقتْ...
لكِ قَطرات أَدمعكِ...
والأَهدابْ... 
تُلملمها... 
أَكفكِ بِصعوبة... 
وكم... 
تَمنيتِ أَن تَضحكِ...
دونَ تبرير وردود... 
وأَن... 
تَتسارعي بكل قوتكِ... 
لِصعود ذلك الجَبل... 
وتَجعليهِ دكاً لغضَبٍ... 
مَسعورٍ بِداخلكِ...
وصَرخات سُجنتْ... 
لسنينٍ... 
طوال دون خوفْ... 
وكم من مرةٍ... 
تمنيتِ أن تَعود...
طفولتكِ وان تلعبي... 
مع والدتكِ... 
وتَحتضنيها... 
بقوةٍ وان لا تَفلتي... 
يَديَّها من جَديد...
أَين أَنتِ الآن يا... 
صديقةَ الروحْ... 
هل مازلتِ هناك... 
جالسة... 
مع غُروب الشَمس... 
تتحادثين... 
معها بلغةٍ صامتةٍ... 
لا يَفهمها سِواكِ... 
ليت تلك اللحظات... 
تأتي...دون رجوع
إِشتياقٌ.. ورفرفةَ قلبٍ 
وصَمتُ عينٍ طويلْ... 
وأوردةٍ سعيدة...
لا تَهاب...ولا تبالي
لِدقاتِ خوفٍ... 
تَهجمُ... 
بِأَفواجِها حِصناً... 
وصُقورها الجارحة... 
التي تَرمي بأَنظارها... 
القاسية نحو قلبكِ... 
لتلتهمهُ بشراهةٍ وحقد... 
بأَظفارها القاتلة... 
وتُبيد عنكِ كل فَرحةٍ....
تُصفقُ لقدومكِ... 
وتُهدمُ جِسرَ المَحبةِ... 
الذي بَنيتهِ بٍصَبركِ...
وثقتكِ باللَّه العظيم... 
التي ملأََتْ صَدركِ...
عزيمة وقوة... 
كوني بخير رفيقتي... 
فأَنا بحاجةٍ لكِ... 
ولتلكَ الكلمات... 
التي تُزهرُ بسمة...
غابتْ منذ زمنٍ بعيد... 
تنتظر قدومك... 
لتتفتح من جديد... 
---بقلمي---
...سُهاد حَقِّي الأعرجي...
14/12/2018 
الجمعة

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